परिचय और साराज़ी भाषा का महत्व
साराज़ी भाषा जम्मू-कश्मीर के डोडा, किश्तवाड़, रमन, चंदा बगाह, नदही के दई और आसपास के क्षेत्रों की स्थानीय भाषा है। यह भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि सांस्कृतिक विरासत और पहचान का प्रतीक है। सदियों से यह भाषा यहाँ के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है, जिसने उनके रीति-रिवाज, लोकगीत, कहावतें और लोककथाओं को जीवित रखा। हालांकि, समय के साथ इस भाषा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें शहरीकरण, आधुनिक भाषाओं का प्रभुत्व और शिक्षा प्रणाली में कमी शामिल हैं।
9 फरवरी 2025 को जम्मू विश्वविद्यालय के राजेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में आयोजित पहला वार्षिक साराज़ी सम्मेलन इस भाषा और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने का महत्वपूर्ण प्रयास था। इस आयोजन का उद्देश्य साराज़ी भाषा को मान्यता देना, उसके संरक्षण और संवर्धन के लिए समाज में जागरूकता फैलाना और युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ना था।
साराज़ी भाषा का इतिहास और सांस्कृतिक संदर्भ
साराज़ी भाषा की उत्पत्ति और विकास पहाड़ी इलाकों में हुई, जहाँ इसके बोलने वाले मुख्य रूप से डोडा, किश्तवाड़ और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र हैं। यह भाषा मुख्य रूप से मौखिक परंपरा पर आधारित है, जिसमें लोकगीत, कहावतें और कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती आई हैं। परंपरागत रूप से यह भाषा गाँव के मेलों, त्योहारों और सामाजिक समारोहों में जीवंत रहती है।
हालांकि, समय के साथ शिक्षा, प्रशासन और बाजार में हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी का दबदबा बढ़ने लगा। इससे साराज़ी भाषा के उपयोग में कमी आई और युवा पीढ़ी से इसका जुड़ाव कमजोर हुआ। ऐसे हालात में साराज़ी भाषा के संरक्षक और समाज के बुज़ुर्गों ने इस भाषा के अस्तित्व को बचाने का बीड़ा उठाया, जिसके परिणामस्वरूप इस सम्मेलन का आयोजन संभव हो पाया।
सम्मेलन की आवश्यकता और सिविल सोसाइटी साराज़ की भूमिका
साराज़ी समाज में भाषा और संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता सदियों से महसूस की जा रही थी, लेकिन इसे एक संगठित स्वरूप देने का काम "सिविल सोसाइटी साराज़" ने किया। इस संस्था ने साराज़ी भाषा को शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में पुनः स्थापित करने के लिए प्रयास शुरू किए। उनकी मंशा थी कि भाषा केवल एक बोली न रह जाए, बल्कि इसके साहित्य, कला और सांस्कृतिक पहलुओं को भी व्यापक रूप से मान्यता मिले।
इस संस्था ने विभिन्न स्तरों पर साराज़ी भाषा के महत्व को स्थापित करने के लिए काम किया और समाज के सभी वर्गों को इसके संरक्षण के लिए एक मंच पर लाने का प्रयास किया। 9 फरवरी 2025 को पहला वार्षिक साराज़ी सम्मेलन इसी का परिणाम था, जहां भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए व्यापक चर्चा हुई।
सम्मेलन की तैयारी और आयोजन की रूपरेखा
सम्मेलन की तैयारियाँ महीनों पहले शुरू हुईं। आयोजन समिति में प्रमुख भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों में रिशि राणा, संजय राणा और अजय राणा शामिल थे, जिन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ निभाईं। उन्होंने स्थानीय बुज़ुर्गों, शिक्षाविदों और युवाओं के सहयोग से आयोजन की रूपरेखा तैयार की। सम्मेलन के लिए राजेंद्र सिंह ऑडिटोरियम का चयन इस वजह से किया गया कि यह स्थान जम्मू का एक प्रमुख शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्र है।
तैयारी के दौरान पोस्टर, निमंत्रण पत्र और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक कार्यक्रम की जानकारी पहुंचाई गई। साथ ही, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, भाषणों और कार्यशालाओं की भी योजना बनाई गई, जिससे हर आयु वर्ग के लोग अपने अनुभव साझा कर सकें।
सम्मेलन का दिन – लोगों का उत्साह और सांस्कृतिक समागम
9 फरवरी 2025 का दिन एक उत्सव के समान था। सुबह से ही राजेंद्र सिंह ऑडिटोरियम के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। पारंपरिक पोशाक में सज-धज कर आए लोग उत्साह और गर्व के साथ अपनी भाषा और संस्कृति को मनाने आए थे। बूढ़े, युवा, बच्चे सभी ने एकजुट होकर इस सांस्कृतिक पर्व का हिस्सा बनने की खुशी जताई।
कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक स्वागत गीतों और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। मंच सजाया गया था स्थानीय फूलों और साराज़ी प्रतीकों से। उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथियों, आयोजकों और बुज़ुर्गों का स्वागत गरिमापूर्ण तरीके से किया गया।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ – लोकगीत और नृत्य
सम्मेलन की सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ सबसे आकर्षक और मनमोहक थीं। स्थानीय कलाकारों ने पारंपरिक साराज़ी लोकगीतों को प्रस्तुत किया, जिनमें पहाड़ी जीवन की खुशियाँ, दुख और सामाजिक कथाएँ जीवंत हो उठीं। नर्तकियों ने रंग-बिरंगे पारंपरिक वस्त्र पहनकर पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए, जिससे दर्शकों का मन मोह लिया।
बुज़ुर्गों ने लोककथाओं का वर्णन किया, जिससे युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का अवसर मिला। सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सम्मेलन को जीवंत और यादगार बना दिया।
सम्मान समारोह – पुरानी पीढ़ी और युवा प्रतिभाओं का सम्मान
सम्मेलन के दौरान समाज के उन बुज़ुर्गों को सम्मानित किया गया जिन्होंने वर्षों तक साराज़ी भाषा और संस्कृति के संरक्षण में अहम भूमिका निभाई। उन्हें शॉल और सम्मानपत्र प्रदान किए गए। साथ ही, उन युवाओं को भी पुरस्कार दिए गए जिन्होंने कला, साहित्य और संगीत के माध्यम से साराज़ी भाषा को आगे बढ़ाया।
यह सम्मान समारोह समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और सभी को अपने कर्तव्यों की याद दिलाई कि वे अपनी संस्कृति और भाषा को हमेशा जीवित रखें।
सम्मेलन के प्रभाव और भविष्य की दिशा
पहले वार्षिक साराज़ी सम्मेलन ने साराज़ी भाषा और संस्कृति के पुनर्जागरण की शुरुआत की। इस आयोजन ने समाज में नई ऊर्जा भर दी है। युवा अब न केवल अपनी भाषा को सीखने के लिए उत्सुक हैं, बल्कि उसे प्रचारित और संरक्षित करने के लिए भी तैयार हैं।
भविष्य की योजनाओं में साराज़ी भाषा को स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाने, डिजिटल माध्यमों से साहित्य और कला को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित करने का संकल्प शामिल है।
9 फरवरी 2025 का यह दिन साराज़ी भाषा और संस्कृति के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय साबित हुआ। यह सम्मेलन न केवल एक आयोजन था, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत है जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी पहचान से जोड़ता रहेगा।इस सम्मेलन ने साबित किया कि जब समाज एकजुट होता है और अपनी भाषा व संस्कृति के लिए समर्पित होता है, तो वह अपनी जड़ों को कभी नहीं खोता। साराज़ी भाषा आज नए जोश और गर्व के साथ अपनी जगह बना रही है।


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