अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत सहित कुछ देशों पर 25% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की थी, खासकर उन देशों पर जो रूस से तेल खरीदते हैं। इस पर रूस की तरफ़ से तीखी प्रतिक्रिया आई है।
रूसी अधिकारियों ने ट्रंप के इस रवैये को "पुरानी चालों का दोहराव" बताया और कहा कि अमेरिका की यह नीति खुद उसके लिए खतरनाक हो सकती है।
रूस के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया से कहा:
अगर ट्रंप को लगता है कि अब नए प्रतिबंध या टैरिफ लगाने से हम डर जाएंगे, तो वह 2014 में जी रहे हैं, 2025 में नहीं। उन्होंने आगे कहा कि रूस अब अर्थव्यवस्था, व्यापार और वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में इतना मजबूत हो चुका है कि अमेरिका की ऐसी धमकियों का कोई असर नहीं होता।
भारत, जो इस समय रूस से सबसे अधिक कच्चा तेल खरीद रहा है, अमेरिकी टैरिफ के कारण दबाव में आ सकता है। लेकिन रूस ने साफ कहा है कि वह भारत को तेल आपूर्ति में कोई कमी नहीं करेगा और भविष्य की साझेदारी को नीतिगत धमकियों से नहीं, आपसी समझदारी से चलाना चाहिए।
एक नई भू-राजनीतिक लड़ाई की शुरुआत?
भारत की तेल जरूरतें: रूस बन चुका है 'ऊर्जा का भरोसेमंद साथी'
जब पूरी दुनिया यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से दूरी बना रही थी, भारत ने उस समय तेल खरीदने का साहसिक निर्णय लिया। 2022 के बाद से रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है, और यह निर्णय सिर्फ सस्ता तेल पाने का नहीं था यह भारत की स्वतंत्र कूटनीतिक सोच का प्रतीक था।
डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि रूस से सस्ते तेल की खरीद अमेरिका के हितों के खिलाफ है। इसलिए उन्होंने भारत जैसे देशों को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने रूस से तेल आयात जारी रखा, तो अमेरिका 25% टैरिफ लगा सकता है।यानी भारत का रूस से खरीदा हुआ कच्चा तेल अब अमेरिकी बाजार या उससे जुड़े वैश्विक व्यापार में महंगा और नुकसानदायक हो सकता है।
रूस की प्रतिक्रिया: 'हमें फर्क नहीं पड़ता'
रूस ने इस चेतावनी को व्यर्थ का डर फैलाना बताया। रूसी अधिकारियों का कहना है कि इतने वर्षों से प्रतिबंध झेलते-झेलते अब रूस ऐसे दबावों के प्रति 'प्रतिरोधक क्षमता' हासिल कर चुका है।उन्होंने भारत को आश्वासन दिया है कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो, हम भारत को तेल की आपूर्ति जारी रखेंगे। यह बयान भारत के लिए भावनात्मक रूप से भी खास है, क्योंकि ऐसे समय में जब वैश्विक राजनीति भारत को एक किनारे करने की कोशिश कर रही है, रूस ने दोस्ती में कोई कमी नहीं आने दी।
भारत की स्थिति: दो पाटों के बीच फंसी रणनीति
भारत के सामने अब एक कूटनीतिक दुविधा खड़ी हो गई है। एक ओर है अमेरिका, जो टेक्नोलॉजी, रक्षा और निवेश में भारत का बड़ा भागीदार है, और दूसरी ओर है रूस, जो भारत की ऊर्जा ज़रूरतों का एक स्थायी समाधान बन चुका है। अगर भारत अमेरिकी टैरिफ के आगे झुकता है, तो उसे रूस से तेल खरीद कम करनी पड़ेगी — जिससे घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें बढ़ सकती हैं। लेकिन अगर भारत रूस के साथ डटा रहता है, तो अमेरिका से आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों में खटास आ सकती है।
भारत में आम जनता का सवाल बिल्कुल साफ है हमें अपने देश की ज़रूरत देखनी है, या दूसरों के दबाव में आकर फैसला करना है? रूस से सस्ता तेल मिलने का सीधा फायदा आम आदमी को हुआ है पेट्रोल के दाम काबू में हैं, ट्रांसपोर्ट सस्ता है, और महंगाई थोड़ी स्थिर है। ऐसे में अगर सरकार अंतरराष्ट्रीय दबाव में फैसला करती है, तो इसका सीधा असर जनता की जेब पर पड़ेगा।
निष्कर्ष: दोस्ती, दबाव और देशहित के बीच संतुलन
भारत आज ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ हर रास्ता किसी न किसी चुनौती से भरा है।
1. रूस के साथ बनी साझेदारी सिर्फ व्यापार की नहीं, विश्वास की भी कहानी है
2. जबकि अमेरिका का दबाव भारत को एक बार फिर “आप या वो” वाली स्थिति में खड़ा कर रहा है।
आने वाले कुछ हफ्तों में भारत की विदेश नीति की परीक्षा होगी और यही तय करेगा कि क्या भारत अपने हितों की रक्षा करते हुए दुनिया को दिखा सकता है कि "हम स्वतंत्र हैं, लेकिन जिम्मेदार भी।
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